लेखिका: अश्विनी मोकाशी, Ph.D.
साल का दूसरा महीना यानी फ़रवरी आजकल प्यार का प्रतीक माना जाता हे। प्रति वर्ष १४ फ़रवरी को वेलेंटाइन डे मनाया जाता हे। ऐसा कहा जा सकता हे की यह महीना हमारे जीवन में सभी प्यारे रिश्तों को मनाने के लिए है। परमात्मा के प्रति संत कबीर के प्रेम के बारे में सोचने का यह सही समय है।
भारतीय साहित्य में भक्ति और प्रेम की भावनाओं का कविता में अक्सर एक साथ उपयोग किया जाता था। इस मिश्रण का उद्देष्य ये था की पाठकों को प्रोत्साहित कर के आध्यात्मिक दिशा में जाने का मार्गदर्शन करना। अनेक बुद्धिमान व्यक्तियों ने कविता में लिखे गए प्रेम रस को मार्ग बना कर आम व्यक्ति को भगवान के प्रति भक्ति का मार्ग दिखाया। प्रेम रस के ज़रिए उनका भक्ति भाव जगाना एक आसान तरीक़ा था।
संत कबीर का जन्म एक ऐसे काल में हुआ था, जहां भक्ति भाव ऐवम प्रेम रस की कविता में लोगों का समान आकर्षण था। प्रेम एक वास्तविकता थी और शाश्वत प्रेम आदर्श था। आधुनिक दुनिया में, लोग अहंकार, द्विध्रुवी और विभिन्न मानसिक गड़बड़ियों जैसी वास्तविकताओं को स्वीकार लेते हे बजाए इस तर्क के की उनके पास बिना शर्त प्यार करने की क्षमता है। भगवान के लिए प्यार के रूप में ‘ भक्ति ‘ शब्द शायद केवल धर्म के छात्रों के लिए जाना जाता है।
संत कबीर लिखते है:
‘मोही तोही लागी नाही छूटे‘
जैसे कमल पत्र जलवां सा
ऐसे तुम साहिब हम दासा
मोही तोही आदि अंत बन आई
अब कैसे लगन दुराई
कहे कबीर हमार मन लागा
जैसे सरिता सिंधु समाई
विश्लेषण:
इस कविता में सुंदर रूपक का सन्दर्भ मन और आत्मा का मेल भगवान है। जिस प्रकार कमल का पत्ता कभी भी पानी में नहीं डूबता है और हमेशा ऊपर तैरता रहता है, उसी प्रकार हरेक व्यक्ति प्रभु की शरण में संरक्षित रहता है। कबीर भगवान से कहते हैं, हमारा प्रेम शाश्वत है, यह कभी खत्म नहीं होगा। जैसे नदी सागर में प्रवेश करती हे वैसे ही मेरा हृदय परमात्मा के शाश्वत ब्रह्मांड में विलीन हो जाता है।
प्रासंगिकता:
कविता के अनेक अर्थ हैं। यह आध्यात्मिक सिद्धांत के साथ एक इंसान के अंतरंग के बारे में बात करता है। इसमें कबीर की भक्ति और निर्मल आस्था के बारे में भी बात की गई है जो दूसरों के लिए प्रेरित करती हे। कविता धार्मिक या अन्य मतभेदों की परवाह किए बिना आध्यात्म के साथ मानव मन के अंतरंग और शाश्वत संबंध को भी व्यक्त करती है।
आधुनिक समय के लिए इस कविता की प्रासंगिकता इस संभावना को दर्शाती है कि मानव मन विकसित हो सकता है। मन इस आध्यात्मिक संबंध को समझ सकता है और हमारी दुनिया में निष्पक्षता और अन्याय की व्यापकता के बावजूद इसका आनंद ले सकता है। यदि मानव मन ऐसा करने में सफल हो जाए तो वह शाश्वत प्रेम का अनुभव कर सकता है। जैसे-जैसे हम इस शाश्वत प्रेम के प्रति अधिक जागरूक होते जाते हैं, ध्यान का हमारा अभ्यास बढ़ता जाता है। हम अधिक प्यार और दूसरों से प्यार स्वीकार करने में सक्षम हो जाते हैं।

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